क्या गजब हो गया

जिक्र तिल का चला......
जो गुड़ में लगा तो गजक हो गया !
तेरे गालों पे लग के गजब हो गया ।

जीता था यूं ही बदहवास सी जिंदगी !
बना शायर तेरा दीवाना मैं जब हो गया !

तेरी नजरे उठी मैंने सजदा किया
तेरा पलकें झुकाना अजब हो गया !

अल्हड सा था मैं बेतरतीब थी जिंदगी !
आया सलीका तेरा दीवाना जाने कब हो गया !

जाने कितने मिले मुझे उस राह पर !
तू है जबसे मिला मेरा सब खो गया !

दो पल को मिला तू मुझे हमसफर ,
खोया जब से तुझे तू मेरा रब हो गया !

14 नवम्बर 2017
14:30 अपराह्न

अजीज मित्र श्री ओम सिंह जी की प्रथम पंक्तियों की प्रेरणा से

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