तुम खुश तो हो न अंजुमन

अंजुमन !

हाँ यही वो नाम है जिसने शाहिद को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया ।
ऐसा शाहिद नहीं सोचता बल्कि शाहिद के अजीज दोस्त सोचते हैं ।
आरोप लगाते हैं कि अंजुमन ने गलत किया शाहिद का दिल तोड़ दिया ।

क्यों ?

क्या सच में अंजुमन ने गलत किया
नहीं !
शाहिद ने तो कभी नहीं कहा
वह तो कभी सोचता भी नहीं क़ि अंजुमन गलत लड़की है ।

सुनो अंजुमन
गलती शाहिद की भी नहीं
शाहिद भी नहीं चाहता था कि अपना हाल ए दिल बयां करना ।

अंजुमन !
शाहिद जानता था कि तुम्हारे अब्बा तुम्हारा निकाह एक अच्छे लड़के से करेंगे और शाहिद अच्छा नहीं था ।
और न ही उसकी हैसियत थी ।
कहाँ तुम जैसी सलीकेदार लड़की और कहाँ वो
जाहिल ।

इसलिए ही तो शाहिद नहीं कह रहा था ।

शाहिद ने हिम्मत करके कहा
तुमने मना कर दिया और शाहिद मुस्कुरा के निकल गया जाने कहाँ किसकी तलाश में ।
तुम्हें खुश देखने के लिये वो अपना चेहरा भी नहीं दिखाता क्योंकि वो जाहिल तुम्हें पसन्द नहीं था ।

ईद आने वाली थी तुमने शबनम से मजाक में कहा कि शाहिद मियां नहीं दिखते आजकल ,
ईद की ईदी नहीं भिजवा रहे क्या ?
तुम्हारी क्या खता थी बस यूं ही तो कह दिया था शबनम से ।

उधर शाहिद भी आगया वापस अपने जिगरी यार विजय से मिलने आखिर काफी दिनों बाद मिलने वाले थे न ! शाहिद उसके सामने सब कुछ भूल जाता

मगर उस अजीज ने भी तुम्हारी तरह हाथ खींच लिया ।

पता है क्यों ?
क्योंकि शाहिद जाहिल था । और विजय का परिवार नहीं चाहता था कि विजय जैसा सभ्य लड़का आगे भी उस जाहिल से कोई राबता रखे

शाहिद एक बार फिर मुस्कुराया और खुदा का शुक्रिया अदा किया ।
वापस जाने की तैयारी की कि शबनम ने तुम्हारा पैगाम दिया ।

ईद मुबारक !
मेरे शाहिद
तुम्हारी अंजुमन

और फिर क्या सोच कर तुमने अंजुमन नाम को काट भी दिया था ।

वो बस एक मुबारकबाद का पैगाम था जिसे समझने में शाहिद गलती कर गया
फिर रुक गया बर्बाद होने के लिए

तुम्हारी तालीम पूरी भी नहीं हुई कि तुम्हारे अब्बा ने तुम्हारा निकाह कर दिया ।

अमजद !
बहुत अच्छा लड़का है अमजद और रईस भी ।
तुम्हारा ख़याल रखेगा हमेशा ।
और तुम निकाह करके चली गयी आजमगढ़
बहुत खुश थी ढेर सारे सपनों के साथ ।

शाहिद एक बार फिर मुस्कुराया !
और बस इतना कहा -
"यूं ही किसी को पा लेना ही मुहब्बत का उसूल नहीं होता"

तुम्हारी क्या खता थी अंजुमन ?
तुम्हे कुछ पता नहीं था, तुम्हारे सामने एक हसीं सपनों की दुनिया थी ।

शाहिद ने तुम्हें अपने लिये माँगा ही कब था जो खुदा से शिकायत करता ।

शाहिद ने खुदा से जो माँगा वो तुम्हे मिल ही गया था ।
सच में शाहिद भी अब खुश है ,
अकेला मस्तमौला !
शाहिद बस एक बात और चाहता है ,
जब शाहिद बूढ़ा हो जायेगा तो आएगा तुमसे मिलने आजमगढ़
तुम आओगी न ?

कोई शिकवा नहीं होगा तब
बस ये पूछेगा -
तुम खुश तो हो न अंजुमन ?

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