प्रोफेसर और उनकी किताब
एक प्रोफेसर थे जिन्हें पढ़ने का बड़ा शौक था।
वे पढ़ने बैठते तो कई किताबो को एक साथ चट कर जाते थे।
वे सभी धर्मो पर शोध कार्य कर रहे थे। वे दुनियां को एक ऐसी किताब भेंट स्वरूप देना चाहते थे जो सभी धर्मों के बारे में एक सटीक जानकारी प्रस्तुत कराए। जैसे कौन सा ग्रंथ कब लिखा गया, किस धर्म का उदय कब हुआ, उसकी मान्यताये, विशेषताएं और उसमें छिपे रहस्य और विज्ञान इत्यादि।
वे बड़े गद गद हो रहे थे अपने इस शोध कार्य को लेकर। वे अपने ही बनाये सपनो में खो जाते कि कैसे उनकी इस किताब से दुनियां सच्चाई जानेगी और लाभान्वित होगी। उसकी किताब दुनिया की सबसे सच्ची और सबसे महान किताब होगी। अरे किताब क्यो वह तो ग्रंथ होगी ग्रंथ।
यह कोई सामान्य किताब नहीं आसमानी किताब है जिसकी प्रेरणा स्वयं ईश्वर उसे दे रहे हैं।
जब उनकी पुस्तक अपने अंतिम चरण में थी। तब उन्हें बड़ा शोर सुनाई दिया। उठकर उन्होंने खिड़की से देखा तो बड़ी भीड़ नजर आयी। वे अपने कमरे से नीचे आये और घर के बाहर गए।
तो देखा एक आदमी मरा पड़ा है जिसे ढेर सारे लोग घेरे खड़े हैं और आपस मे बाते कर रहे हैं। उन्होंने लोगो की बाते सुननी शुरू कर दी।
कोई कह रहा था- बड़ा बुरा हुआ ये आदमी आराम से चला जा रहा था और एक कार ने जानबूझकर इसे टक्कर मारकर मार डाला। ये मर्डर है।
तो दूसरा आदमी बोला- नही भाई
कार वाले से धोखे से ये टक्कर हुई है ये दुर्घटना मात्र है।
तीसरा बोला- कार वाले की कोई गलती नही है ये आदमी गलत तरीके से सड़क पार कर रहा था।
चौथा बोला - अरे यार ये आदमी तो किनारे पर खड़ा था इसको पीछे से किसी ने धक्का मार दिया और ये कार के नीचे आ गया।
उसने हरे रंग की शर्ट पहनी हुई थी और उसकी हाइट काफी ज्यादा थी।
पांचवा - मरने वाले को धक्का दिया गया ये बात तो ठीक है लेकिन धक्का देने वाला लंबा नही था छोटे कद का था और उसने हरी नही नीले रंग की शर्ट पहनी हुई थी।
इतने में एक पंडित जी आगे आये और बोले - तुम सब मूर्ख हो ये सब बिधि का विधान था इसकी मृत्यु आ गयी थी मेने हप्ते भर पहले इसकी कुंडली देखी थी और इसे बताया था इसका मृत्यु योग चल रहा है।
वहां से गुजरते हुए एक डॉ ने कहा - ये तो मेरा मरीज है इसे अटैक आने की शिकायत थी। मेने इससे कहा था अकेला कहीं न जाये कभी भी अटैक आ सकता है। ये नहीं माना और आज देखो ये मर चुका है।
इतने में दो वकील वहां आये उनमे से एक बोला - ये मर्डर है मैं इसे कोर्ट में मर्डर साबित करूगां।
दूसरा वकील बोला - नहीं ये दुर्घटना है मैं इसे कोर्ट में दुर्घटना साबित करूगां।
वहां एक नेता जी का आगमन हुआ उन्होंने मरने वाले कि दाढ़ी देखी और कहा आखिर कब तक अल्पसंख्यकों पर जुर्म होता रहेगा। हमारा हक हमे नहीं दिया जाता, हमे बेवजह सजाएं होती है , हमे मारा जाता है।
और वह शहर के बीचों बीच पंडाल गड़ाकर धरने पर बैठ गया।
मीडिया वाले पहुचे कोई कह रहा था हिन्दू ने जान ली कोई कह रहा था ये मुस्लिम था और आतंकियों से मिला था।
न्यूज रूम में कैमरे के सामने विवाद चालू हुए बड़ी खबर बनाई गई।
कोई कह रहा था हिंदू जान बचाता है जिसने इसे मारा वह सच्चा हिन्दू नही।
कोई कह रहा था हमने देश की आजादी में खून बहाया और आज हमारा ही खून बहाया जा रहा है।
किसी अखबार ने बताया मरने वाला हिन्दू था और जिसने धक्का दिया वह मुसलमान था।
सारे दलबदलुओं ने अपने स्टेटमेंट बदलने शुरू कर दिए। अपने ही वक्तव्यों के अनोखे अर्थ प्रस्तुत किये।
इतने में पुलिस आयी सारे लोग तितर-बितर हो गये। लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। केस कोर्ट पहुच गया। दोनो वकील अपनी अपनी दलील लेके आगे आये। इंश्योरेंश कंपनी ने भी एक वकील किया जिसे इस घटना को इंश्योरेंश से पैसे लेने के लिए आदमी का आत्महत्या कर लेना साबित करना था।
गवाहों की खरीद फरोख्त चालू हुई। असली लोग जो वहां थे गायब हो गए नकली लोग गवाही दे रहे थे।
नेता जी धरने पर बैठ इंसाफ की गुहार लगा रहे थे और जनता नेता जी के साथ होकर उनके द्वारा हाँकी जा रही थी।
विपक्षी नेता कड़ी कार्यवाही के आश्वासन का चम्मच चला रहा था।
कट्टर धार्मिक काफिरों को मारने की तैयारी में थे क्योकि उनके जाति भाई की धार्मिक कारणों से हत्या की गई थी।
दूसरे सामूहिक कट्टर लोगो को डर दिखाकर कह रहे थे कि हमारी सरकार को नहीं चुनोगे तो अल्पसंख्यक बहुसंख्यक हो जायेगे।
सीधे साधे लोग घरों में दुबके भगवान से प्रार्थना कर रहे थे।
मीडिया पूरे कवरेज को इस तरह सूट कर रही थी कि समस्या और विकराल रूप में आ जाये।
ये सारा माजरा देखने के बाद प्रोफेसर सोचने लगा सामने घटी घटना के इतने साक्ष्य हो सकते हैं, तरह तरह की बाते हो सकती है, अनोखी कहानियां बनाई जा सकती हैं, चुनावी लड़ाइयां लड़ी जा सकती हैं, धार्मिक उन्माद फैलाया जा सकता है।
तो जो मैं लिख रहा हूँ वह तो कई हजार वर्ष पुराना है उसके साक्ष्यों के साथ क्या हुआ होगा? कितनी बातें ,कितनी कहानियां, कैसे कैसे तर्क??
आखिर इनकी प्रमाणिकता पर क्या कहा जा सकता है??
वह घर आया और उसने अपनी किताब फाड़कर फेंक दी।
मित्रो,
समझने की कोशिश करो।
जो व्यक्ति इसे कार वाले द्वारा किया गया मर्डर कह रहा था उसके मन में अमीरों के प्रति एक नफरत थी।
जो व्यक्ति इसे दुर्घटना कह रहा था उसके मन में हर बार कार वालो को ही गलत ठहराए जाने के प्रति नाराजगी थी सो वह इसे एक्सीडेंट कह रहा था।
जिसने धक्का देने की कहानी बनाई वह अपनी बात में सबसे ज्यादा बजन चाहता था ताकि लोग उसे रोमांचक तरीके से सुने।
इसलिये उसने उसके साथ खड़े एक आदमी का हुलिया बताकर कहानी का निर्माण कर दिया।
जो आदमी रंग को अलग बता रहा था वह हरे के लिए कलर ब्लाइंड था जिसे वह नीला देख रहा था और उसकी खुद की हाइट काफी ज्यादा थी इसलिए वह उसे छोटे कद का बता रहा था।
धक्का देने वाली बात उसने अनजाने ही स्वीकार कर ली।
पंडित अपनी ज्योतिष विद्या का प्रचार करना चाहता था।
डॉ अपने परीक्षण और क्लिनिक को प्रमोट कर रहा था।
वकील खुद को गरीबो का मशीहा दिखाने के लिए उसे मर्डर साबित करना चाहता था।
दूसरा वकील उसे हराकर नंबर वन होना चाह रहा था।
इंश्योरेंश अपने पैसे बचा लेने की मसक्कत में था। और गवाह मौके को भुनाकर कुछ कमाई कर रहे थे।
नेता चुनाव जीतने के स्वप्न दर्शन में थे तो कुछ अपनी गद्दी के बचाव में थे।
जनता अपने अपने नेता की चापलूसी कर उसकी नज़र में प्रमुख स्थान चाहती थी।
मीडिया अपनी TRP को आसमान की उचाईयो तक ले जा रही थी।
प्रत्येक के अपने मकसद थे जो उनकी वासनाओ से जन्मे थे।
कोई भी तो वहां निर्विषय चित्त का नहीं था तो खरा सच सामने आता भी तो कैसे??
लेकिन हम सब अक्सर हजारो वर्षो पुरानी बातों पर लड़ते दिखाई देते हैं जो हमे पता ही नहीं होती। हमारी भी वासनाएं है हमे लड़ाकर राज करने वालो की भी वासनाएं हैं।
वह प्रोफेसर तो समझ गया और उसने अपनी मान्यताओ से बनी , वासनाओ से जन्मी किताब को तिलांजलि दे डाली।
हम अपने भीतर की उस किताब को कब जला रहे है जो हमे वासनाओ में फ़साती है जो पक्षपाती रवैया को सुदृढ करती है। जो किसी किताब को ग्रंथ बनाकर सब पर शासन करने की लालसा लिए है।
क्या हमारे भीतर की प्रामाणिकता खो गयी है??
क्या हमारे भीतर का प्रोफेसर मर गया है दोस्तो???
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