साठ साल
मित्रों मैं जब भी किसी भक्त से अच्छे दिनों का पूछता हूँ तो पता नहीं क्यों मिर्ची लग जाती है और वो बौखलाहट में कहने लगते हैं कि कांग्रेस ने 60 सालों में क्या किया ?
मतलब अपने 100 दिन में अच्छे दिन वाले मुद्दे से ध्यान भटका दिया ,
तो चलिए एक छोटा सा जबाब उन मूर्खों के लिए जो 60 साल का विधवा विलाप करते रहते हैं ।
60 साल पहले देश में मोबाइल तो दूर लैंड लाइन भी जनता को नसीब ना था, किसी किसी गाँव में लोग कार, SUV तो दूर ट्रै्क्टर मुश्किल से ले पाते थे, साइकिल भी सबके पास नहीं होती थी। सीमेंट भी कोटे से मिलता था, बिजली नसीब नहीं थी, नमक भी महँगा था। कृषि उपज की लागत ज्यादा होने से एक मजदूर पूरे दिन की दिहाड़ी में 1 किलो अनाज नहीं कमा पाता था। मेट्रो जैसी सुविधायें तो दूर की बात पक्की सडकें नहीं थी। स्मार्ट टीवी, इन्टरनेट तो दूर की बात रेडियो खरीदनी सबके बसकी नहीं थी। वाशिंग मशीन, एसी की सुविधाओ से दूर लोग लू के थपेड़े खाते हुए कुओं पर कपड़े धोने जाते थे। हवाई जहाज का सफ़र साधारण जनता के लिए एक सपने जैसा था। परमाणु बिजलीघर और नाभिकीय बम केवल विकसित राष्ट्रों की उपलब्धि थी। और लोग कहते हैं 60 साल में देश में कुछ नहीं हुआ।
कुछ मूर्ख कहेंगे ऐसा विकास पूरी दुनिया में हो रहा है। पूरी दुनिया में जो विकास आया उसी के साथ भारत में विकास आया तो मतलब भारत पूरी दुनिया के साथ दौड़ रहा है, अगर उन्हें विकास की गति कम लगती है तो पिछले 1 साल में उन्हें विकास की गति कम क्यों नहीं लगी जिसमें कुछ हुआ ही नहीं। हाँ निर्यात घटा (माँस निर्यात को छोड़कर), निजी क्षेत्र में नौकरियाँ छूट रही हैं, उत्पादन घटा, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल सस्ता होते हुए भी
घरेलू बाज़ार में टैक्स बढ़ाकर अपेक्षाकृत मूल्य कम नहीं होने दिया गया।
गौरतलब है कि भारत के पास चीन से थोडा भू क्षेत्र होते हुए भी हमारा देश, चीन के बराबर और अमेरिका से 3 गुनी से अधिक जनसँख्या (विश्व का लगभग 5वां भाग) का पालन करता है, तब भी जनता को मूल अधिकार प्राप्त हैं चीन की तरह मानवाधिकारों का हनन नहीं होता, जैसे लोग आजतक की सरकारो की आलोचना करते रहते हैं, चीन में कब के जेल में डाल दिए गए होते, और फेसबुक का प्रयोग तो भूल ही जाते जहाँ आप कुछ भी लिख डालते हैं। आंग सान सु-की प्रकरण तो याद ही होगा? देश में इतनी जनसँख्या होते हुए भी आज तक सिविल वार जैसी स्थिति नही आई, नहीं तो मध्य पूर्व में देख लीजिये किस प्रकार दुनिया को तेल बेचने वाले अमीर देशो की सरकारों ने आतंकवादी संगठनो के आगे घुटने टेक रखे हैं। जबकि भारत में 300 साल औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था कें काल में इंग्लैंड को विकसित करने में सारे देश के संसाधनों का दोहन हुआ, आज़ादी के बाद 3 दशको तक देश ने पडोसी देशो के साथ लड़ाईयाँ झेली, उसके बाद से क्षेत्रीय आतंकवाद झेला, फिर पाकिस्तान और श्रीलंका समर्थित आतंकवाद झेला तब भी देश दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। और लोग कहते हैं देश में कुछ नहीं हुआ। रिलायंस, टाटा, विप्रो, मारुति, हीरो मोटोकोर्प, बजाज, टीवीएस, लार्सन एंड टुब्रो, इनफ़ोसिस, कॉग्निजेंट, फ्लिप्कार्ट, टीसीएस, विडियोकॉन, भारती एयरटेल, बीएचइएल, भारत इलेक्ट्रिकल, इंडियन आयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम, ओएनजीसी जैसी दिग्गज कंपनियाँ जो आज दूसरे देशो तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुकी हैं क्या ये विकास नहीं है? कुछ अज्ञानी लोग कह सकते हैं इनमे अधिकाँश प्राइवेट कंपनियाँ हैं उनके मालिकों ने अपनी कंपनियों को बनाया और चलाया सरकार ने क्या किया? तो अमेरिका में तो सभी प्राइवेट कंपनियाँ ही हैं मतलब वहां की सरकार ने कुछ नहीं किया?
मारुति उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को सरकारी उपक्रम के माध्यम से देश में जगह देने के साथ वाहन निर्माण, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को शुरू करने वाली पिछली सरकारों के दौरान एफडीआई का विरोध करते रहने वाले अब विकास के पैदा होने के लिए निवेश की ज़रूरत बताकर निवेश के लिए देश विदेश हाथ पैर मारते फिर रहे हैं। यदि ये विरोध पहले ही ना करते अब तक देश में कितना विकास हो चुका होता?
और मजे की बात है, पिछले 2 साल से जब भी इसरों कोई उपग्रह प्रक्षेपण या डीआरडीओ कोई मिसाइल परीक्षण करते हैं तो ये लोग स्वदेशी उपलब्धि पर अपनी छाती थपथपाने लगते हैं इसरो और डीआरडीओ का विकास भी तो इन्ही 60 साल की उपलब्धि है? अपना देश चाँद के बाद मंगल की कक्षा तक पहुँच चुका 60 के दशक से देश परमाणु शक्ति हासिल कर चुका था, अगर अब भी कोई यह मानता है कि पिछले 60 साल में विकास नहीं हुआ तो इसे मूर्खता की पराकाष्ठा ही कहा जायेगा, हाँ इन 60 सालो में कुछ और भी बढ़ा है वो है भ्रष्टाचार जिसमे पिछले साल से अब तक कोई कमी आनी तो दूर और वृद्धि होती दिख रही है, जिसमें इस सरकार से भ्रष्टाचार मुक्त भारत की उम्मीद करना भी बेमानी होगी।
इन 60 सालो में अगर किसी का विकास नहीं हुआ तो वह देश के किसान का, पहले भी किसान ट्रैक्टर लोन पर लेता था और क़िस्ते चुका पाने में असमर्थ रहता था, आज भी किसान की हालत अलग नहीं है,
देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, जो पिछले 5 सालो में कुछ प्रतिशत कृषि से इतर अन्य क्षेत्रो की तरफ मुड़ी है, कृषि पर निर्भर इस आबादी के लिए कुल सकल उत्पाद देश की जीडीपी का मात्र 14.5% है, जबकि आधी से भी कम जनसंख्या की आय में 85.5 प्रतिशत जीडीपी पर निर्भर है। जब पिछले 30 वर्षो से कृषि उत्पाद, फसलो, अनाज के भाव में वृद्धि नगण्य ही रही है, और अन्य सभी औधोगिक उत्पाद और सेवाओ के दामो में वृद्धि हर 10 साल में 7 गुनी हो जाती है, ऐसे में जाहिर है कृषि की लागत और मजदूरी बढ़ जाने से कृषि आय कम रह गयी है, और ऐसे में कृषि पर निर्भर जनसँख्या की आय अत्यंत अल्प है। निश्चित तौर पर पिछले 65 साल में सरकार किसी की भी रही हो, पहली पंचवर्षीय योजना के बाद से ही महालनोबिस की नीति के कारण सबका लक्ष्य कृषि की उपेक्षा ही रहा ताकि उद्योगों के लिए कृषि से विमुख सस्ते मजदूर मिलते रहे, और कृषि की जमीन सस्ते दाम पर अधिग्रहित होती रहे। यह नीति आजतक जारी है। गुजरात में आत्महत्या करते किसान और अब पिछले एक साल में देश भर में किसानो की आत्महत्याओ में वृद्धि से जाहिर है समावेशी विकास शव्द इस सरकार की शब्दावली में भी नहीं है।
लेकिन बिहार की हार से बौखलाई वर्तमान सरकार जिस दिन उत्तर-प्रदेश का चुनाव जीत कर राज्यसभा में बहुमत हासिल कर लेगी तो भूमि अधिग्रहण संशोधन का जिन्न फिर से बोतल के बाहर आएगा।
कृषि की उपेक्षा पर हम पिछले 3 साल से लिख रहे हैं, विकास के जिस पहलु को मोदी जी जनता को दिखाते हैं, और जिस तरह का विकास ना होने का रोना रोते हैं, वही विकास जो किसानो से जमीन अधिग्रहित करके किया जाता है, वैसा विकास तो इस देश में 60 साल से हो रहा है मोदी जी के होश सँभालने के पहले से हो रहा है, देश को ज़रूरत है कृषि पर निर्भर जनता का विकास करे बजाय उनकी ज़मीने हड़पने के, जिस दिन देश की कृषि गर्त में चली गयी दुनिया के खाद्यान निर्यातक देश भारत को आँख दिखाने लगेंगे और आईटी कंपनियों के 6 अंको में कमाने वाले लोग भी खाने पीने की ज़रूरत पर आय का बड़ा हिस्सा खर्च किया करेंगे।
आज गुज़रात के औद्योगिक विकास की बलि चढ़ा पाटीदार समुदाय आरक्षण के लिए सड़क पर उतर आया तो कांग्रेस भाजपा केंद्र सरकारो की कृषि के प्रति उपेक्षित नीति के चलते पिछड़ चुके जाट गुज्जर समुदाय आरक्षण के लिए आंदोलनरत है।
जाट, गुज्जर, पाटीदार आरक्षण की लीगल डिमांड जातिगत जनगणना के आंकडो पर संभव है इसके अलावा जितने धड़े इन जातियों के आरक्षण पर आन्दोलन करने की योजना बना रहे हैं वो सब राजनीतिक महत्वाकांक्षा की प्रतिपूर्ति की इच्छा से प्रभावित हैं।
ठीक है इनका समर्थन नहीं कर सकते तो विरोध मत करो माँग उठाये रखने से लोग अपने हक़ के लिए जागरूक रहते हैं।
आर्थिक तौर पर आरक्षण का लाभ नहीं होता यह मात्र शैक्षिक और लोक नियोजन में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
आर्थिक वृद्धि के लिए जो स्वयं को क्रीमी लेयर और फॉरवर्ड जाति वाले समझते हैं कृषि उत्पाद और फसल के अधिक दाम चुकाने को तैयार हो और फसलो के दाम बढाने के लिए आन्दोलन करें।
क्या कारण है कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सेदारी 14.5% रह गयी है ?
इसका कारण है कि कृषि उत्पाद/फसलो की कीमतों में अन्य उत्पादों और सेवा के सापेक्ष पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई बल्कि 3 दशकों से कुछेक अपवादों को छोड़कर कमोबेस एक जैसे ही दाम बने हुए हैं।
चाय का दाम 30 साल पहले चीनी के दाम का 4 गुणा था, चूँकि चाय की खेती बागान के मालिक किसान नहीं उद्योगपति है अतः चाय के दाम गन्ने के मुकाबले कई गुणा बढ़ गए। आज चीनी के मुकाबले चाय के दाम 12 गुणे हैं जबकि चाय की खेती में गन्ने की खेती से लागत कम आती है।
आप सोचेंगे चीनी भी तो उद्योगपति बनाते हैं?
तो चीनी के लिए कच्चा माल गन्ना की आपूर्ति तो किसान करते हैं, और चीनी के दाम सरकार द्वारा नियंत्रित हैं अतः मिल मालिक उद्योगपति इसका बोझ किसान के ऊपर ड़ाल देते हैं। गन्ने का भाव कम करके, भुगतान एक से दो साल तक रोक कर। किसान बेचारा कर्ज में डूबा अगले साल का गन्ना बोने और फसल तैयार करने में लग जाता है।
70 के दशक में एक दिन की अकुशल मजदूरी और 1 किलो गेंहूँ का दाम भी बराबर था, आज एक दिन मजदूरी में आराम से व्यक्ति 25 किलो गेंहू खरीद सकता है।
आप सोचिये यदि गन्ने/चीनी का भाव चाय के वर्तमान भाव के हिसाब से 12 गुणा कर दिया जाये और 1 किलो गेंहूँ का भाव एक दिन की निर्धारित अकुशल मजदूरी जितना कर दिया जाये या उसका आधा भी कर दिया जाये इसी प्रकार अन्य फसलो के दाम भी बढ़ाये जायें तो कृषि का जीडीपी में हिस्सा कम से कम 3-5 गुणा बढ़ जायेगा जिसका मतलब होगा जो आंकड़ो में कृषि को अर्थव्यवस्था में सीमान्त दिखाया जा रहा है वास्तव में आज भी कृषि के ऊपर ही मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था का बोझ डाल रखा है।
आप सोच सकते हैं यदि किसानो को उनका हक़ दिया जाये तो उनका वास्तव में आर्थिक विकास होगा। कृषि में धनोपार्जन बढ़ेगा तो बेरोजगारी की समस्या और अपराध भी कम होंगे।
किसानों को अपनी फसलो के दाम बढ़ाने की माँग जाति, धर्म और क्षेत्र के मुद्दों से ऊपर उठकर करनी होगी एक व्यापक आन्दोलन गठित करना होगा। याद रखिये कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है आज भी अधिकतर अर्थशास्त्री इस तथ्य को स्वीकार करते हैं, आपके किसानो के हक की माँग के पक्ष और विपक्ष में क्या विचार हैं?
दूसरी बड़ी ज़रूरत शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और सभी बोर्ड-विश्वविद्यालयो की परीक्षा और मूल्याँकन प्रणाली में एकरूपता लाने की, कई कमेटियों की रिपोर्ट दशको से धूल चाट रही है जिन के अनुसार सुधार अभी तक नहीं हुए,
मोदी कहते हैं राज्य जीएसटी बिल रोक कर देश का विकास रोक रहे हैं वाह, पिछले 10 साल से जब जब मनमोहन सरकार इस बिल को पास करवाना चाहती थी मोदी जी स्वयं इस बिल के विरोध में देश का विकास रोक रहे थे।
आइये देखते हैं 60 साल में और क्या क्या हुआ।
1. पोलियो मुक्त भारत ।
2. सूचना का अधिकार कानून।
3. भूमि अधिग्रहण बिल।
4. भोजन का अधिकार ।
5. शिक्षा का अधिकार।
7. चंद्रयान । चाँद पर तिरंगा लहराया।
8. मंगलयान। मंगल ग्रह पर पहुचे।
9. मेट्रो ट्रेन ।
10. परमाणु पनडुब्बी का निर्माण।
11. तेजस लड़ाकू विमान का निर्माण।
12 अग्नि मिशाइल1,2,3,4 का निर्माण।
13. अग्नि 5 मिशाइल 5 हजार किलोमीटर तक वार करने वाली का निर्माण।
14. परमाणु मिशाइल ब्रह्मोस का निर्माण।
15. अन्तरिक्ष में अनेक उपग्रह स्थापित किये।
16. अंतराष्ट्रीय स्तर के एरोड्र्म का निर्माण।
17. विश्व आर्थिक मंदी से देश को बचाए रखा अमेरिका और यूरोप में लाखो नौकरियाँ छूटी अपने देश में नहीं।
19. गाँव गाँव संचार सुविधाओ के तहत मोबाइल सुविधाए व् इंटरनेट उपलब्ध।
20. मनरेगा में करोड़ो ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध करवाया।
21. देश के जिलो की चिकित्सालयो में गहन शिशु चिकित्सा इकाई की स्थापना।
22. राजीव गांधी आवास के तहत शहरों में रहने वाले गरीबो को आवास उपलब्ध।
23. इंदिरा आवास ग्रामीणों को।
24. सेकड़ो विधवा बहनों को विधवा पेशन।
25. लाखो निराश्रितो को पेशन।
इसके अलावा कुछ योजना जिनमे अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया पर कम से कम पिछली सरकारों ने इन्हें शुरू ज़रूर किया। जैसे
26. लाखो किसानो के कर्ज माफ़।
27. मजदूर बीमा योजना।
28. गरीब किसानो को निःशुल्क कृषि उपकरण प्रदाय।
28. किसानो की फसलो का क्रय एवम बोनस राशि ।
29. मध्यान्ह भोजन योजना।
30. लाखो आंगनबाड़ी का निर्माण ।
31. आंगनबाडीयो में कार्यकता को रोजगार।
32. कुपोषित बच्चो को पोषण आहार वितरण ।
33. निःशुल्क शिक्षा व् छात्रवृत्ति।
34. आदिवासियों को क्रषि भूमि का हक पटे वितरित।
35. क्रषि ऋण क्रेडिट कार्ड योजना।
36. भ्रष्टाचार पर रोक के लिए लोकपाल बील
37. राष्ट्रीय राज मार्गो का चौड़ीकरण
1947 मे देश को स्वतन्त्रता दिलाने के बाद सरकार ने किया देश का विकास
1947- 50 = देश को दिया दुनिया का सबसे बेहतर संविधान और प्रजातन्त्र
1947- 48 = लगभग 550 देशी रियासतों को देश मे शामिल किया- देश जोड़ा
1950-60 = वस्त्रोद्योग को बढ़ावा ... कपड़े मे हुआ देश आत्म निर्भर
1960 = गोवा को देश मे मिलाया
1950- 75 = विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं मे हुआ बांध और नहरों का निर्माण
देश का सिंचित क्षेत्र कई गुना बढ़ा 8
1950- 65 = देश मे अन्तरिक्ष और परमाणु कार्यक्रम की नीव भाभा परमाणु संयंत्र, तारापुर परमाणु बिजलीघर, विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष अनुसंधान केंद्र, थुंबा प्रक्षेपण केंद्र आदि की स्थापना
1950-1965 – देश मे IIT, IIM और इन जैसे अन्य शिक्षा केन्द्रो की स्थापना
1965 = पाकिस्तान को युद्ध मे बुरी तरह हराया
1971- पड़ोसी को दी उसके कुकर्मों की सज़ा... किया पाकिस्तान के दो टुकड़े
1974= पहला पोखरण परमाणु विस्फोट देश बना विश्व का 5वां परमाणु हथियार सम्पन्न देश
1970-75 = देश मे हरित क्रांति देश हुआ अनाज के उत्पादन मे आत्म निर्भर
1984- 89 = देश मे कंप्यूटर और दूरसंचार क्रांति की शुरुवात।
और मोदी सरकार के कार्यकाल की उपलब्धि भी देखें।
साल 2015 फरवरी में पेट्रोल 63 रूपए लीटर और कच्चा तेल 45-50 डॉलर प्रति बैरल था 2016 में जब कच्चा तेल 29 डॉलर प्रति बैरल पर था तो पेट्रोल के दाम 66 रूपए प्रति लीटर, अब जब कच्चा तेल 55-58 डॉलर प्रति बैरल है तो पेट्रोल 71₹ प्रति लीटर के ऊपर। ये है इनकी लूटनीति।
बीजेपी हमेशा कांग्रेस के घोटाले दिखाकर खुद को देशभक्त साबित करती है और जनता को बेवकूफ बनाती है।
पिछली सरकार ने 2G स्पेक्ट्रम का 20% भाग बेचा था 62000 करोड़ रुपए में, तब संघियों ने 1,76,000 करोड़ का घाटा बताया था, अब मोदी जी ने बचा हुआ 80% स्पेक्ट्रम 1,10,000 करोड़ में 20 साल की उधारी में बेच दिया जिसकी ब्याज सहित 21 लाख करोड़ कीमत थी, कहाँ गया घाटा
60 साल में किसान की दुर्दशा के लिए संघी कभी काँग्रेस के खिलाफ नहीं बोले क्योंकि जब-जब इनकी सरकार आयी इन्होंने किसानो पर आयकर और सब्सिडी घटाने निर्यात पर रोक लगाने जैसे कार्य कर किसान की कमर तोड़ी ताकि इनके उद्योगपति जमीन सस्ते में हड़प सकें, ये नहीं चाहते कि किसान खुशहाल हो उसकी दुर्दशा होगी तो वो खुद जमीन छोड़ देगा।
कमाल की बात है इन्हें अदानी के लिए भूमि हड़पने की तो लगी रहती है किन्तु एक भी भाजपा शासित राज्य में आईटी और बीपीओ हब विकसित नहीं हुए। गुडगाँव, नॉएडा, बंगलौर, चेन्नई को लूटने के लिए तो घात लगाये बैठे हैं कभी विकास की सीख ली इन टेक्नोलॉजी पार्क्स से? एक मेट्रो तक नहीं चलवा सके अपने राज में, करोडो खा गए गुजरात में मेट्रो पर शोध में ये चलाएंगे बुलेट, 60 साल के विकास के लिए इन्हें 160 साल लगते गौ गोबर और मूत्र से आगे सोचते तो कुछ होता।
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