नफरत की तलाश

ताहिर !
यही नाम था उस आवारा से दिखने वाले लड़के का ।
हर पल बदहवास सा रहता था खुशमिजाज तो था मगर सनकी । औरों का छोड़िये खुद की नजर में आवारा और वाहियात था  ।
जहाँ तक उसे याद है वो बचपन से ही अजीब था , पढ़ने में औसत मगर बेवकूफियों में अव्वल दर्जे का मूर्ख काम ऐसे करता क़ि कोई भी व्यक्ति उसे डाँट देता मगर खुशमिजाज इतना कि जल्द ही सब कुछ भूल जाता ।
 
10वीं में था तब पहली बार निलोफर को देखा वो मासूम सी लड़की बड़ी ही अल्हड और बिंदास लड़की थी ।
ताहिर बड़ा मतलबी और स्वेच्छाचारी लड़का था यहां तक की स्कूल में भी उसकी मनमर्ज़ियों को कोई नहीं रोकता था मगर इस साल ऐसा नहीं रहा
ताहिर की अगर कोई शिकायत करता तो वो निलोफर थी  और उसकी शिकायतों के कारण ताहिर की निरंकुशता पर लगाम लगने लगी थी इसी वजह से निलोफर से अगर कोई जी जान से चिढ़ता तो वो ताहिर था ।
ताहिर हर वक्त उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगा रहता मगर निलोफर इन सब बातों से अनजान अपनी दुनिया में खोई रहती ।

ताहिर ने एक फिल्म देखी और उसके एक डायलॉग ने उसकी जिंदगी को बदल दिया या यूं कहिये ताहिर को समय से पहले बड़ा कर दिया ।
डायलॉग था "मुहब्बत की पहली सीढ़ी नफरत होती है "
धीरे धीरे यही बात उसके मन में घूम गई और उसे लगने लगा कि निलोफर के लिए उसके मन में भरी नफरत मुहब्बत की ही पहली सीढ़ी है बाल मन नए सपने बुनने लगा किशोरावस्था में कदम रखते ही मन हिलोरें मारने लगा ।
और निलोफर के करीब आने की कोशिश करने लगा निलोफर इन सब बातों से अनजान ताहिर की बेवकूफी भरी हरकतों की वजह से ताहिर को अक्सर डाँट देती और ताहिर का किशोर मन इसे नफरत समझने लगा वही नफरत जो फिल्मों में मुहब्बत की पहली सीढ़ी होती है ।

ताहिर का एक सबसे अच्छा दोस्त था गौरांश एक दिन ताहिर ने अपने दिल का हाल गौरांश को बताया तो गौरांश ने भी उसका हौसला बढ़ाया और कहा कि बस इजहार कर दो ।
मगर ताहिर जिसका निलोफर के आते ही कलेजा सूख जाता भला वो कैसे बोलता
एग्जाम हुए और ताहिर फेल होगया तो ताहिर को दुसरे स्कूल में भेज दिया उधर निलोफर भी अब दुसरे स्कूल जाने लगी ।
निलोफर के मन में कुछ नहीं था मगर ताहिर उसे नहीं भूल सका और अब उसका स्कूल में मन नही लगता था । धीरे धीरे ताहिर के सभी साथियों को पता चल गया कि ताहिर निलोफर को चाहता है और उन्होंने कहा कि जल्दी से इजहार कर दो एक दिन ताहिर ने अपना हाले दिल निलोफर से कहा
निलोफर इन बातों से अनजान थी वो ताहिर को ऐसा नहीं समझती थी वो तो निलोफर ने मना कर दिया मना ही नहीं अपितु शिकायत भी की तो ताहिर की अम्मी ने ताहिर की खूब मरम्मत की ।
ताहिर का किशोरवय मन कुंठित हो गया ।

ताहिर को अब लगने लगा की निलोफर उससे नफरत करती है वो काफी शर्मिंदा था क्योंकि जनता था कि निलोफर का दिल उसने दुखाया है ।
समय गुजरा ताहिर दूसरी लड़कियों में निलोफर की तलाश को निकल चुका था ।
अगले दो साल उसने इसी तरह गंवाए किसी भी लड़की से दोस्ती करता करीब आता और मुहब्बत का इजहार करता और जैसे ही वो लड़की उसके प्यार को स्वीकार करती तो ताहिर का सनकी मन कहता ये निलोफर नहीं है उसने तो मेरा प्यार अस्वीकृत किया था मुझे तिरस्कृत किया था ये निलोफर नही  है ।
अब समझ में आया ताहिर मुहब्बत नहीं निलोफर को नफरत तलाश कर रहा था ।
उसे याद भी नहीं था कि उसने कितनी लड़कियों को नफरत की तलाश में फ़्लर्ट किया था मगर एक बात थी ताहिर ने कभी किसी लड़की का जिस्म नहीं छुआ
करीब आता इजहार करता और स्वीकार होते ही  चला जाता कहीं और नफरत की तलाश में ।
जाने क्यों निलोफर की नफरत के सामने उसे किसी की मुहब्बत फीकी लगती ।

ज्यादातर लड़कियों को ताहिर भूल जाता मगर एक लड़की जिसे न तो ताहिर भूल पाया न वो लड़की ताहिर को ।
दोनों साथ पढ़ते थे रिद्धिमा काफी होशियार थी और ताहिर ने सुना था कि बहुत ही घमंडी लड़की है ताहिर को यकीन होगया ये मेरी मोहब्बत को जरूर ठुकरा देगी और मुझे वो नफरत फिर मिलेगी जो निलोफर करती है ।
ताहिर ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और करीब आगया धीरे धीरे रिद्धिमा भी ताहिर को सन्द करने लगी वो अनजान थी ताहिर मुहब्बत नहीं नफरत ढूंढ रहा है एक दिन ताहिर ने प्रेम का इजहार किया और रिद्धिमा भी यही चाहती थी उसने स्वीकार कर लिया मगर हर बार की तरह हुआ ताहिर को मुहब्बत नहीं नफरत की तलाश थी ताहिर जानता था रिद्धिमा के प्यार को वो भी रिद्धिमा का दिल नहीं दुखाना चाहता था मगर उसकी सनक थी नफरत की तलाश जो उसे
फिर से दूर ले गई ।

मगर ये आखिरी तलाश थी  क्योंकि ताहिर भी टूट चुका था रिद्धिमा को तोड़ने के बाद ।

ताहिर अब लड़कियों से दोस्ती नहीं करता ।
मगर सनकी है जाने कब निकल पड़े

एक बार फिर नफरत की तलाश में जो शायद ही पूरी हो ।

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