लोहिड़ी
लोहिड़ी का त्यौहार विशेष रूप से पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मनाया जाता है ,
लोग मिल कर आग जलाते हैं और फिर उसमें तिल मूंगफली और रेवड़ियां डालते हैं ।
आज बात करते हैं कि लोहिड़ी मनाना कैसे शुरू हुआ,
इस बात पर लोगों में काफी किदवंतियां और लोक कथाएं प्रचलित हैं ,
जो सबसे पुरानी कथा है उसके अनुसार-
दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है।
लेकिन मुख्य रूप से लोहिड़ी एक मुस्लिम वीर और मुगल शासन के विद्रोही *दुल्ला भट्टी* की याद में मनाई जाती है ।
दुल्ला भट्टी एक विद्रोही थे जिन्होंने मुगल साम्राज्य की तानाशाही नीतियों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के तहत विद्रोह करके मुगलों की नाक में दम कर दिया था ।
कहा जाता है कि उस वक्त गरीब लड़कियों को जबरजस्ती अमीर लोग उठा लेजाते थे, ये कहानी शुरू होती है जब एक गरीब ब्राह्मिण की दो बेटियों को एक अमीर उठा कर लेगया लेकिन एक योजना के तहत वीर दुल्ला भट्टी ने उन बेटियों को मुक्त कराया और उनकी लाज रखी, एवं उनकी शादी भी हिन्दू लड़कों से ही करवाई और पूरा प्रबंध और व्यवस्था भी दुल्ला भट्टी ने किया ।
यहाँ मैं एक बात की ओर ध्यान इंगित करना चाहता हूँ की वीर दुल्ला भट्टी एक मुस्लिम था जिनसे धर्म की दीवारों को तोड़ कर इंसानियत की खातिर विद्रोह किया और सफल भी हुआ ।
आज लेकिन हम धर्म संप्रदाय और जातिवाद की बेड़ियों में खुद को जकड़ कर भी कितना गर्व महसूस करते हैं ।
आओ आज हम सब मिल कर लोहिड़ी मनाएं और आपस के सभी वैमनस्य भुला कर निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ते जाएं ।
इसी के साथ मैं अब्बू जाट अपनी लेखनी को विराम देता हूँ
शीघ्र मिलता हूँ एक नए लेख के साथ ।
तब तक के लिए नमस्कार
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