धर्म परिवर्तन


मित्रों अक्सर मीडिया में ये बातें चलती रहती हैं कि फलां जगह इतने लोगों ने धर्मपरिवर्तन कर लिया
हमारे महान राष्ट्र की कुछ राजनैतिक पार्टियाँ इस मुद्दे की आग जला कर रोटियां भी सेकती हैं ।
कहीं मौलवियों पर आरोप लगते हैं कि धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं तो कहीं मिशनरियों को बदनाम किया जाता है , ये आरोप कितने सटीक हैं मैं इस मुद्दे पर कुछ नहीं कह सकते मगर धर्मपरिवर्तन के बारे में सटीकता से नहीं बताया जाता ।
हमारे देश में धर्मपरिवर्तन रोज हो रहा है और उस धर्मपरिवर्तन को कोई पंडित मौलवी या पादरी नहीं बल्कि हमारी सरकारें करवाती हैं
ये एक कड़वी सच्चाई है ।
आजादी के बाद सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन "किसानों" का हुआ है ।

एक बार फिर दोहरा रहा हूँ धर्म परिवर्तन किसानों का हुआ है ।
करोडो "किसानों" को "मजदूरों" में परिवर्तीत कर दिया है ।
और बेहद घटिया कृषि नीतियों की वजह से करोड़ों अन्नदाता बर्बादी के कगार  पर खड़े हैं ।

समय से बिजली पानी नहीं दिया जाता, मगर ये किसान बहुत लाचार है चुप चाप रात में भी पानी लगा लेता है  ।

कृषि उर्वरकों और कृषि रक्षक दवाइयों में हर साल इजाफा होता है , लेकिन किसान की फसल का मूल्य जस का तस और किसान चुपचाप ।

खेतिहर मजदूरों की मजदुरी हर साल बढ़ जाती है हमें अच्छी तरह याद है आज से 10-12 साल पहले 70 रूपये रोज में कृषि मजदूर मिलते थे मगर आज 300 रूपये में बड़ी मुश्किल से मिलता है , मगर किसान की आय सीमित ।

डीज़ल और कृषि उपकरणों पर मूल्य वृद्धि के कारण मशीन आधारित श्रम जैसे जुताई बुबाई, और फसल निकासी की लागत में भी वृद्धि हुई है ।

इन सब के बाद भी फसलों के मूल्य उचित नहीं मिलते इसका एक छोटा सा उदाहरण लीजिये ,
सरसों जो एक तिलहन फसल है औसतन 35₹ प्रतिकिलो किसान से खरीदी जाती है , छः महीने बाद फिर से बुबाई के वक्त बीज खरीदो तो 150 से 450 रूपये प्रतिकिलो का मूल्य पैकेट बंद सरसों का,
भैया आपकी सरसों कहाँ उगी थी इतना बड़ा अंतर लेकिन किसान बड़ा बेवकूफ होता है बेचारा चुप चाप खरीद लेता है ।

70 % कृषि पर आधारित जनता में से यदि सिर्फ 10 % को भी यदि दुसरे क्षेत्रों में भेजा गया तो हाल क्या होगा कभी सोचा है ? अभी शहरों का हाल ये है की पानी, बिजली और सफाई की समस्या है , सोचो की ये करोड़ों लोग यदि शहर में आते हैं तो क्या हमारे शहरों में इतना दम है की वो संभाल सकें इस भार को ?
कृषि क्षेत्र ही इस रोज़गार की समस्या का हल निकाल सकता है, न की समस्या को यहाँ से वहां स्थानांतरित करना , लेकिन हमारी सरकार कृषि को तबाह करने पर तुली हुई है I किसान की मदद करने की जगह उसकी हालत खराब कर रही है I भाई इनको खत्म तो कर दोगे लेकिन जब किसान नहीं रहेगा तो सिर्फ मजदूर बचेगा I
है इतने संसाधन ? हैं इतने रोज़गार बाकि क्षेत्रों में ?

न हिन्दू खतरे में है , ना मुसलमान खतरे में है,
ऊंची इमारतों से निकल कर देखो सत्ता के हुक्मरानों,
हमारे देश का अन्नदाता किसान खतरे में है ।

इसी के साथ मैं अब्बू जाट अपनी लेखनी को विराम देता हूँ ,
मिलता हूँ एक नए लेख के साथ
तब तक के लिए नमस्कार 🙏🙏

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