पकोड़ा

मित्रों आज कल पकोड़े पर बड़ी चर्चा चल रही है जिधर देखो उधर केवल पकोड़े की ही चर्चा है ।
ऐसा लगता है गणतंत्र दिवस के पूर्व सप्ताह देश देशभक्तिमय न होकर पकोड़ामय हो गया है और नमकीन भी ।
विपक्षी और आलोचक इसमें सियासी चटनी डाल कर जहाँ चटकारे लेरहे हैं तो वहीं सत्ता पक्ष के लोगों तो मिर्ची लग रही है ऐसा लगता है मिर्ची वाला पकोड़ा उनके हिस्से में ही आगया है तो अब ना उगलते बन रहा है न निगलते ।
खैर ये तो सियासी गलियारे हैं कौन क्या कर गया हमें क्या फर्क पड़ेगा हमें तो सर्दी के मौसम में गर्म चाय के साथ पकोड़े मिल जाएं तो मजे आजाएं ।
लेकिन ध्यान आया कि पकोड़े तलने वाली तो है ही नहीं भयंकर कुंवारे जो ठहरे 😊

खैर छोड़िये ये हमारी निजी समस्या है ।

वैसे मेरे हिसाब से खिचड़ी को राष्ट्रीय खाद्य के बाद पकोड़े को राष्ट्रीय स्नैक्स घोषित कर ही दिया जाय और हो भी क्यों न ?
कौनसा गुण नहीं है पकोड़े में ?

सर्वधर्म समभाव की भावना रखता है ।
शाकाहारी थाली में जहाँ पालक पकोड़े, पनीर पकोड़े गोभी पकोड़े और कहीं कढ़ी के साथ मिल कर शान बढ़ाता है तो वहीं मांसाहारी थाली में चिकेन पकोड़ा और मटन पकोड़ा भी कम नहीं है ।

कोई भेदभाव नहीं करता !
एक पकोड़ा ही तो है जिसे चाय के साथ दो या शराब के साथ
सबका साथ सबका स्वाद
की भावना को साथ लेकर चलता है कभी किसी वर्ग को शिकायत नहीं रही ।

लोगों में बुराई ढूंढने की आदत को कम  करता है ।
बारिश के मौसम में जब तेज बारिश होती है और शहरों में जल निकासी की व्यवस्था के ख़राब होने और सड़कों में गढ्ढे होने के कारण जब जल भराव की समस्या हो जाती है और एक आम आदमी जब सरकार और प्रशाशन को गरियाना शुरू करता है तभी बीबी गर्मा गर्म पकोड़े चाय के साथ लाती है तो इंसान सब बुराइयों को भूल कर बस पकोड़े में खो जाता है ।

इसलिए मुझे लगता है कि पकोड़े को उचित सम्मान मिलना चाहिए

अंततः यही कहना चाहूंगा कि
जिस देश में लोग ॐ नमः शिवाय या 786 को 11 बार शेयर करके फ़ोन रिचार्ज होने की या धनलक्ष्मी लॉकेट को पहन कर धनवान होने की चाहत रखते हों उस देश में पकोड़े बेच कर रोजगार के अवसर पैदा करना कहाँ गलत है ।

इसी के साथ मैं अब्बू जाट अपनी लेखनी को विराम देता हूँ ।
मिलता हूँ एक नए लेख के साथ
तब तक के लिए नमस्कार 🙏🙏

टिप्पणियाँ

Yunus Naimi Shah ने कहा…
Bahut behtreen vyangy

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