मैं लेखक अज्ञानी

ना तो कोई शायर हूँ मैं,
ना साहित्य का कोई ज्ञानी ।
अल्फाज दिल से निकलते हैं,
बाकी सब तुम्हारी मेहरबानी ।

छोटी सी जिंदगी है मेरी,
छोटी ही है कहानी ।
थोड़ा सा मस्तमौला हूँ,
करता मैं मनमानी ।

आज बात कुछ अलग लिखूंगा,
कुछ भी नहीं छुपानी ।
आज तुम्हे बतलाता हूँ,
मेरी बातें अनजानी ।

मासूमी से गुजरा बचपन,
खुशहाल बड़ी जिंदगानी ।
रोज रोज खाता था डाँट मैं,
खूब करी नादानी ।

नजर लगी खुशियों को मेरी,
खुशियाँ हुई रवानी ।
अल्प आयु में पिता को खोया😢
जिंदगी हुई वीरानी ।

फिर संभला उठ खड़ा हुआ मैं,
मन में मैंने ठानी 💪।
लड़ लिया जिंदगी से मैं,
कोई हार ना मानी

14वां बसंत था,
ऋतु थी बड़ी सुहानी ।
नजरें 👁टकराई एक दिन,
कर बैठी नादानी 💖।

सामाजिक दबाब था मुझ पर,
जिम्मेदारी भी थी निभानी ।
उसकी खुशियों की खातिर,
इश्क़ की दी कुर्बानी ।

जब सबसे मुक्त हुआ अब्बू,
कुछ और ही मन में ठानी ।
राजनीति का आशिक बन गया,
शुरू की नई जिंदगानी ।

कुछ भी ऐसा नया नहीं अब,
बातें वही पुरानी ।
रोज नए रंग रूप  नया ढंग
सिखलाती जिंदगानी ।

भूल हुई तो करो माफ़ अब
मैं लेखक अज्ञानी
करता हूँ मनमानी........

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