ऐ किसान तू क्यों दुखी है
हे किसान!
क्यों आत्महत्या कर रहा है? कौनसी लोकलाज तुम्हे भयभीत कर रही है? लुटेरों की मंडी में खड़ा होकर क्यों झूठी इज्जत के बहाने अपने बच्चों को अनाथ कर रहा है? एक आत्महत्या दूसरी आत्महत्या के लिए प्रेरणा बनती है। खुद खड़ग क्यों नहीं उठा लेता? तुझे पता है गुनहगार कौन है फिर इसकी सजा अपने बच्चों को क्यों दे रहा है? तुझे पता है इसका समाधान कहाँ से निकलेगा फिर खामोशी की चादर ओढ़कर क्यों सोया है? तुझे पता है खुशहाली का रास्ता कहाँ से शुरू होता है फिर बर्बादी के मंजर में क्यों भटक रहा है? उठ! जाग चिर-निद्रा से! उठा लोकतांत्रिक खड्ग और कब्जा कर सत्ता पर
सत्ता शर्मो-हया की हदें पार करती रही
हम मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते रहे!
वो मदहोशी के जाल में हमे लूटते रहे
और हम मन्नत से जन्नत तलाशते रहे!!
बड़ा गहरा दर्द छिपा है दामन में मेरे
वो अपनी सुनाता रहा, मैं दबाता रहा!
न उसने कभी पूछा, न मैंने उसे सुनाया
वो अपनी गाता रहा, मैं यूँ बहलाता रहा!!
बहुत डरा हूँ इधर-उधर की सुनकर
हौंसला मत हारना मेरे तारणहार!
मैं सहमकर भी खड़ा हूँ डटकर
तूँ यूँ ही बढ़ता रह मेरे पालनहार!!
न कबीरा गायेगा तेरे गम को
न रैदास उगलेगा तेरा वो राज!
न चाणक्य थामेगा दुर्बल दम को
न मीरा बदलेगी तेरा वो साज!!
खड़ा हूँ भुजा बनकर तेरी आज मैं
आत्मबल को कमजोर होने न देना!
मैं संभाल लूंगा दामन आंसुओं का
पर जमाने भर को यूँ रोने न देना!!
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