एक दीपक भारतीय सेना के नाम

असमय बुझे दीप जिनके दीप उनके जला आयें
आओ दिवाली इस बार घर उनके भी मना आयें

सोयें सुख की सेज़ हम वो काँटों पर सो जाते हैं
जीवन सुरक्षित करने को हमारा फना हो जाते है

जाने किस मिट्टी के बने हंस मिट्टी में मिल जाते हैं
हम चले खुश रहना तुम हंस कर वो कह जाते हैं

मौत सामने खड़ी बेशक़ देशहित गले लगाते हैं
खाते गोली सीनों पर हरगिज न पीठ दिखाते हैं

पत्थर कोई फैंके उनपर वो चुप सहन कर जाते हैं
सजता कोई गहनों से वो ओढ़ तिरंगा सज जाते हैं

गुलशन चमन वतन का गर ये है उनका अहसान
उनके दम से सुरक्षित हमारी आन बान और शान

आओ कुछ याद उन्हें भी कर लें दूर जो चले गये
कर अँधियारा घरों में अपने मजबूर वो चले गये

दीप खुशियों के जलायें उनके भी सूने आंगन में
कुछ समय उनको भी निकालो व्यस्त जीवन में

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