धनतेरस
धनतेरस या लूटतेरस !!
दिवाली आ गयी है हर बार की तरह इस बार भी पाखंडी लोग धनतेरस पर सामान खरीदने के फायदे बता रहे हैं कि कौन सा सामान किस दिन खरीदने पर घर में लक्ष्मी आएगी कुबेर आएगा। और हम बिना सोचे समझे इन पाखंडी बातों को मान लेते हैं और धनतेरस के दिन पैसे लेकर थैला उठा कर चल पड़ते हैं बाजार की ओर। आप हर दिवाली को हर धनतेरस को कुछ ना कुछ खरीदते हैं लेकिन क्या आपके पास कुबेर का खजाना है आपको धन प्राप्ति हुई ? इस पर थोड़ा विचार कीजिये।
इन पाखंडी लोगों को पता है कि अब किसान खेत का काम निपटा चुका है जो धान हुआ है उसे बेच कर कुछ पैसे लाया है तो वह पैसा अब इसकी जेब में से कैसे निकाला जाए इसलिए यह तर तरह की कहानियां सुनाते हैं और कहते हैं जाओ धनतेरस को सामान खरीद लो घर में धन की प्राप्ति होगी और किसान बिना सोचे समझे चल पड़ता है और गैर जरुरी चीजे भी खरीद लाता है वह सालों से यह प्रक्रिया दोहरा रहा है सालों से धनतेरस को सामान खरीद रहा है फिर भी अब तक उसे धन की प्राप्ति क्यों नहीं हुई कुबेर का खजाना उसे क्यों नहीं मिला क्यों हर साल उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है कर्ज बढ़ता जा रहा है । धान के भाव गिरते जा रहे है।
अगर वह धनतेरस को एक बार भी सोच समझ ले विवेक से काम ले तो वह पायेगा की कितने सालों से धनतेरस को समान खरीद रहा । और उसे अभी तक कोई कुबेर का खज़ाना नही मिला कोई लक्ष्मी नहीं मिली।
हमें आज अपने को मजबूत बनाना है तो इन पाखंडी लोगों को भगाना होगा उनकी बातों को नकारना होगा नहीं तो ये अपन को कमजोर करते जाएंगे और हम कमजोर होते जाएंगे हमें कुछ भी काम करने से पहले रुकना होगा थोड़ा समझना होगा विवेक से काम लेना होगा ।
जब आपको कोई पाखंडी मिले ओर कहे कि धनतेरस को सामान खरीदना शुभ होता है तो आप उस से कहिए कि तू भी मेरा अनाज, मेरी फसल खरीद ले तेरे लिये भी शुभ होगा।
जो समान पूरे साल नही बिकता है वह धनतेरस के दिन बिक जाता है धनतेरस के दिन हम चीज को बिना देखे-परखे उठा लाते हैं क्योंकि भीड़ इतनी रहती है कि इतना समय हीं नही मिल पाता है हम उस वस्तु के मूल्य से ज्यादा मूल्य दुकानदार को दे आते हैं क्योंकि इस दिन मोलभाव करने को भी समय नही रहता है।
मिठाई तो इस दिन सबसे घटिया मिलती है क्योंकि इतनी ज्यादा मात्रा में लोग खरीदते हैं और इतने ज्यादा मात्रा में शुद्ध दूध और घी की मिठाई बनाना नामुमकिन है इसलिए घटिया, मिलावटी सामग्री को प्रयोग में लेते हैं ओर ऐसी मिठाई अपने घर लाते हैं और खुशी-खुशी खाते हैं। बिमारियों को खुला न्योता देते है। इस दिवाली को हमें अपने पुरखों के अनुसार जो सामग्री अपने घर में है उसी से ही मिठाई बनानी है कोई सामान बाहर से नहीं लाना है घर की बनी मिठाई की होड़ ये दुकान वाली मिठाइयां कभी नहीं कर पाएगी ।
अगर आपको सामान खरीदना ही है तो आप दिवाली के 10 दिन बाद खरीद सकते है या 10- 15 दिन पहले खरीदें है क्योंकि उस वक्त आपको चीज अच्छी मिलेगी बजाएं धनतेरस के।
धनतेरस को बाजारों में केवल लूट होती है और उस लूट का जो सबसे ज्यादा भागीदार बनता है वह किसान है । आप धनतेरस को बाजार में देख लेना आपको कितने ही गांव वाले किसान, औरतें, युवा,बच्चे आपको बाजार में मिल जाएंगे लेकिन जो शहर में रहते हैं जो शहर के लोग हैं बनिया लोग हैं वह धनतेरस को बहुत ही कम न के बराबर सामान खरीदते हैं उनको पता है कि धनतेरस को घटिया सामान बाजारों में बिकता है और दुकानदार को भी पता है कि धनतेरस को गांव से लोग आएंगे और सामान उठा कर ले जाएंगे इसलिए वह पुराना समान इस दिन निकालते हैं पुराना सामान बेचते हैं और गरीब किसान बेचारा उसको खुशी खुशी अपने घर ले आता है ।
एक पल भी किसान घर से निकलते वक्त यह नहीं सोचता है इतनी मेहनत से कमाई पूंजी को वह धनतेरस को बाजार में इस तरह लूटा आएगा।
हमे इन पाखण्डियों से बचना होगा। समाज को बचाना होगा। अपने पैसे को बचाना होगा। बाजारीकरण से बचना होगा ।
किवाड़ो में तेल लगाना , भैंस के सींग रंगना , खेती किसानी के उपकरण साफ़ करना , गाँव कुम्हार से दीपक लेकर लगाना , घर की चीजों से घर पर बनी मिठाई खाना । ये हमारे गाँवों की संस्कृति है हमारे दादा पड़दादा यही करते आये है ।
लेकिन अब हमें बाजारो की चमक में अंधा करके बर्बाद करने की साजिश है । शहरीकरण से गाँवों को बर्बाद करने की साजिश है।
वो तुम्हे शहर जैसी चमक धमक से त्यौहार मनाने को कहेंगे,
तुम गाँव अपनी गाँव वाली सादगी पर अड़े रहना।
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