वारिस

शहर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की मौत हो गयी, सारा परिवार शोकाकुल था ।
अंत में अर्थी को सजा दिया गया और अंतिम यात्रा के लिए सब तैयार हुए तभी एक व्यक्ति आगया और बोला कि इस व्यक्ति पर मेरा 10 लाख का कर्ज था आज मैं कर्ज लेने आया हूँ , मैं अर्थी को तभी उठाने दूंगा जब मेरा कर्ज वापिस हो जाये ।
तो मृत व्यक्ति के चारों बेटे बोले कि हमें तो पिताजी ने कोई कर्ज नहीं बताया था और न ही हम देंगे ।
तो वह व्यक्ति अड़ गया और अर्थी न उठाने देने की जिद करने लगा मृत व्यक्ति के समस्त रिश्तेदार और बंधु बांधव सर झुकाए खड़े थे अंततः बात महिलाओं तक पहुंची और पत्नी को पता चली तो पत्नी भी कर्जा देने से मुकर गयी ।
तभी मृत व्यक्ति की बेटी खड़ी हुई और अपने समस्त जेवर उतार कर उस व्यक्ति को देते हुए बोली आप मेरे मृत पिता का मरणोपरांत इस प्रकार अपमान मत कीजिये ये कुछ जेवर हैं और शेष समस्त धन को मैं लौटाने हेतु वचनबद्ध हूँ ।

सब लोग स्तब्ध थे कि अब ये व्यक्ति क्या करेगा तो वह व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला बेटी अपने जेवर पहन लो दरअसल मेरा कर्ज़ तुम्हारे पिता पर नहीं अपितु तुम्हारे पिता का 10 लाख रुपया कर्ज मुझ पर था लेकिन जब मैंने सुना कि आपके पिता जी इस दुनिया में नहीं रहे तो सोचा उनके वारिस को उनका धन लौटाया जाये,मगर मैं नहीं जानता था कि उनका वारिस कौन है मगर अब मुझे पता चल चुका है कि तुम ही अपने पिता की वारिस हो ।
पास ने खड़े बेटे और भाई भतीजे स्तब्ध थे ।

मित्रों मेरे कहने का आशय है कि बेटी ही कुल का और पिता का नाम रोशन करती है ।
धन्य हैं वो माँ बाप जिनके घर में बेटियों का जन्म होता है ।

इसी के साथ मैं अब्बू जाट अपनी लेखनी को विराम देता हूँ , मिलता हूँ अगले लेख के  साथ
तब तक के लिए नमस्कार 🙏🙏

टिप्पणियाँ

बहुत ही सटीक बात कही है आपने

Unknown ने कहा…
bahut achi baat likhi Abu bhaiya bahut Aise ladke Hain Jo apni biwi ke dar se Maa Baap Ki achi Tarah Se seva nahi kar paate hain aur apne Matlab Ki Duniya Mein phase Rehte Hain parb beti Apne pati yea Saas sasur ke parwaah kiye Bina Apne Mata Pita ki ki sewa karti rahti hai



Dhanyavad Abu bhaiya aapne bahut achi baat likhi bahut acchi baat likhi dhanyavad aapka bhai Amod maharaj

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