होली का इंतजार
विशाल !
एक छोटे से गांव का अपने माता पिता का इकलौता लड़का , पूरे परिवार का प्यार उसे मिलता अल्हड़ और मस्तमौला ।
इंटरमीडिएट की परीक्षा के बाद अपने ताऊ जी के घर दिल्ली चला आया लेकिन यहां का माहौल उसे अजीब सा लगता, हालांकि घर में ताऊ जी ताई जी और भैया भाभी बेहद खयाल रखते फिर भी उसका मन करता कि गांव चलना है ।
एक दिन छत पर खड़ा था कि सामने वाले घर में उसे एक लड़की दिखी बेहद ही मासूम और अल्हड़ सी दिखने वाली लड़की पहली बार में ही विशाल को पसंद आगई थी ।
एक दो दिन और ऐसे ही देखने के बाद पता चला कि उसका नाम शिवी था ।
विशाल को ये तो नहीं पता था कि प्यार क्या होता है लेकिन जिसको देखते ही विशाल की सांसें रुक जाती थीं वो लड़की थी
"शिवी"
विशाल कुछ भी कह नहीं सकता था लेकिन फिर भी रोज सुबह उसे स्कूल जाते हुए देखना और दोपहर में स्कूल से वापस आते हुए देखना विशाल का रोज का काम था । और अब विशाल का मन भी लगने लगा था ।
एक दिन हिम्मत करके विशाल ने शिवी से दोस्ती के लिए बोल दिया और शिवी ने भी स्वीकार कर लिया ।
अब विशाल और शिवी रोज एक दूसरे को छत से देखते और कागज के टुकड़ों पर लिख लिख कर एक दूसरे से बात करते ।
विशाल रोज सुबह जल्दी से जग जाता और भाग कर छत पर जाता तो वहाँ शिवी की लिखी हुई गुड मॉर्निंग वाली पर्ची मिलती ।
एक दिन विशाल ने भाभी से किताबें खरीदने के लिए पैसे लिए और एक दोस्त से पुराना फीचर फ़ोन खरीद कर उसे शिवी को दे दिया ।
अब शिवी और विशाल आराम से बातें कर सकते थे ।
अब दोनों की दोस्ती प्यार में बदलने लगी थी शिवी रोज सुबह किसी न किसी विशाल के पास आती गले मिलती और चली जाती ।
इधर विशाल की माँ का कॉल आया औऱ विशाल से गाँव आने को कहा , विशाल का मन तो नहीं था लेकिन जाना तो था ही । उसने जब शिवी से कहा तो वो बोली तुम मुझे गांव जाकर भूल जाओगे लेकिन विशाल ने वादा किया कि मैं आता रहुंगा और फिर भीगी आंखों से विशाल ने विदा ली और गाँव आगया ।
विशाल का शरीर तो गांव में आगया था लेकिन मन अब भी शिवी के पास ही था गांव में विशाल ने शिवी को बहुत याद किया लेकिन अब जल्दी से वापस भी नहीं जा सकता ।
कई महीने गुजर चुके हैं और होली है शिवी का कॉल आया कि विशाल तुम्हारी बहुत याद आरही है तुम्हें देखना है ।
विशाल ने कहा जल्दी ही आता हूँ और अगले दिन सुबह 5 बजे की ट्रेन से शहर के लिए निकल गया ।
10 बज चुके थे औऱ धुलेंडी का दिन था, विशाल छत पर खड़ा था गली में देखा तो शिवी होली खेल रही थी ।
शिवी ने विशाल को छत पर देखा तो शरमा कर घर में चली गई ।
शिवी की धड़कनें तेज हो रहीं थी और इधर यही हाल विशाल का था ।
शिवी और विशाल की दोस्ती अब चाहत में बदल रही थी,
अब रोज अलसुबह शिवी विशाल के घर आती और माथा चूम कर जगा कर चली जाती ।
कहते हैं अच्छे दिन ज्यादा दिन नहीं चलते और हुआ भी ऐसा एक दिन शिवी की मम्मी ने शिवी को विशाल के साथ जाते हुए देख लिया ।
उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा बस इतना कहा कि बेटा हम इज्जतदार लोग हैं तुम गलत नहीं हो लेकिन हमारी इज्जत उछल जाएगी ।
विशाल भावुक हो गया और बोला ऑन्टी जी अब से ऐसा कुछ नहीं होगा और उसी दिन विशाल ने अपना बैग तैयार कर लिया, अगले दिन निकलना था ।
शाम को शिवी विशाल के घर आई, चेहरे पर झूठी मुस्कान थी ताकि विशाल को दुःख न हो लेकिन लाल आँखे सारी हकीकत बयां कर रहीं थीं ।
उसने एक अंगूठी विशाल को दी और बस इतना कहा कि "अगर कभी भगवान ने चाहा तो हम जरुर मिलेंगे , मैं तुम्हारा इंतजार करुंगी और हो सके तो तुम भी करना, ये अंगूठी हमारे प्यार की निशानी है इसे संभाल कर रखना" कहते कहते शिवी की आंखें डबडबा गयीं और तुरंत मुद कर वापस चली गयी और विशाल भी खुद को रोने से नहीं रोक सका ।
6 महीने गुजर चुके हैं और विशाल अब एक नौकरी की तैयारी कर रहा है आज उसका टेस्ट है ।
लेकिन परीक्षा केंद्र पर एक मुसीबत खड़ी हो गयी , उसकी अंगूठी जो अंदर नहीं जा सकती और न ही आसानी से उतर सकती क्योंकि वो तो उसकी उंगली में फंस चुकी है ,
एक अजीब सी कशमकश में है विशाल एक तरफ उसके प्यार की निशानी और दूसरी तरफ उसके प्यार को पाने का जरिया उसकी नौकरी और अंततः विशाल उस अंगूठी को कटवा कर टेस्ट देने चला जाता है ।
अब विशाल को इंतजार है दोबारा से दिल्ली जाने का
उसे इंतजार है उस होली का जब विशाल छत लर खड़ा होगा और शिवी शर्मा कर अंदर चली जायेगी .......
जारी है ...........
एक छोटे से गांव का अपने माता पिता का इकलौता लड़का , पूरे परिवार का प्यार उसे मिलता अल्हड़ और मस्तमौला ।
इंटरमीडिएट की परीक्षा के बाद अपने ताऊ जी के घर दिल्ली चला आया लेकिन यहां का माहौल उसे अजीब सा लगता, हालांकि घर में ताऊ जी ताई जी और भैया भाभी बेहद खयाल रखते फिर भी उसका मन करता कि गांव चलना है ।
एक दिन छत पर खड़ा था कि सामने वाले घर में उसे एक लड़की दिखी बेहद ही मासूम और अल्हड़ सी दिखने वाली लड़की पहली बार में ही विशाल को पसंद आगई थी ।
एक दो दिन और ऐसे ही देखने के बाद पता चला कि उसका नाम शिवी था ।
विशाल को ये तो नहीं पता था कि प्यार क्या होता है लेकिन जिसको देखते ही विशाल की सांसें रुक जाती थीं वो लड़की थी
"शिवी"
विशाल कुछ भी कह नहीं सकता था लेकिन फिर भी रोज सुबह उसे स्कूल जाते हुए देखना और दोपहर में स्कूल से वापस आते हुए देखना विशाल का रोज का काम था । और अब विशाल का मन भी लगने लगा था ।
एक दिन हिम्मत करके विशाल ने शिवी से दोस्ती के लिए बोल दिया और शिवी ने भी स्वीकार कर लिया ।
अब विशाल और शिवी रोज एक दूसरे को छत से देखते और कागज के टुकड़ों पर लिख लिख कर एक दूसरे से बात करते ।
विशाल रोज सुबह जल्दी से जग जाता और भाग कर छत पर जाता तो वहाँ शिवी की लिखी हुई गुड मॉर्निंग वाली पर्ची मिलती ।
एक दिन विशाल ने भाभी से किताबें खरीदने के लिए पैसे लिए और एक दोस्त से पुराना फीचर फ़ोन खरीद कर उसे शिवी को दे दिया ।
अब शिवी और विशाल आराम से बातें कर सकते थे ।
अब दोनों की दोस्ती प्यार में बदलने लगी थी शिवी रोज सुबह किसी न किसी विशाल के पास आती गले मिलती और चली जाती ।
इधर विशाल की माँ का कॉल आया औऱ विशाल से गाँव आने को कहा , विशाल का मन तो नहीं था लेकिन जाना तो था ही । उसने जब शिवी से कहा तो वो बोली तुम मुझे गांव जाकर भूल जाओगे लेकिन विशाल ने वादा किया कि मैं आता रहुंगा और फिर भीगी आंखों से विशाल ने विदा ली और गाँव आगया ।
विशाल का शरीर तो गांव में आगया था लेकिन मन अब भी शिवी के पास ही था गांव में विशाल ने शिवी को बहुत याद किया लेकिन अब जल्दी से वापस भी नहीं जा सकता ।
कई महीने गुजर चुके हैं और होली है शिवी का कॉल आया कि विशाल तुम्हारी बहुत याद आरही है तुम्हें देखना है ।
विशाल ने कहा जल्दी ही आता हूँ और अगले दिन सुबह 5 बजे की ट्रेन से शहर के लिए निकल गया ।
10 बज चुके थे औऱ धुलेंडी का दिन था, विशाल छत पर खड़ा था गली में देखा तो शिवी होली खेल रही थी ।
शिवी ने विशाल को छत पर देखा तो शरमा कर घर में चली गई ।
शिवी की धड़कनें तेज हो रहीं थी और इधर यही हाल विशाल का था ।
शिवी और विशाल की दोस्ती अब चाहत में बदल रही थी,
अब रोज अलसुबह शिवी विशाल के घर आती और माथा चूम कर जगा कर चली जाती ।
कहते हैं अच्छे दिन ज्यादा दिन नहीं चलते और हुआ भी ऐसा एक दिन शिवी की मम्मी ने शिवी को विशाल के साथ जाते हुए देख लिया ।
उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा बस इतना कहा कि बेटा हम इज्जतदार लोग हैं तुम गलत नहीं हो लेकिन हमारी इज्जत उछल जाएगी ।
विशाल भावुक हो गया और बोला ऑन्टी जी अब से ऐसा कुछ नहीं होगा और उसी दिन विशाल ने अपना बैग तैयार कर लिया, अगले दिन निकलना था ।
शाम को शिवी विशाल के घर आई, चेहरे पर झूठी मुस्कान थी ताकि विशाल को दुःख न हो लेकिन लाल आँखे सारी हकीकत बयां कर रहीं थीं ।
उसने एक अंगूठी विशाल को दी और बस इतना कहा कि "अगर कभी भगवान ने चाहा तो हम जरुर मिलेंगे , मैं तुम्हारा इंतजार करुंगी और हो सके तो तुम भी करना, ये अंगूठी हमारे प्यार की निशानी है इसे संभाल कर रखना" कहते कहते शिवी की आंखें डबडबा गयीं और तुरंत मुद कर वापस चली गयी और विशाल भी खुद को रोने से नहीं रोक सका ।
6 महीने गुजर चुके हैं और विशाल अब एक नौकरी की तैयारी कर रहा है आज उसका टेस्ट है ।
लेकिन परीक्षा केंद्र पर एक मुसीबत खड़ी हो गयी , उसकी अंगूठी जो अंदर नहीं जा सकती और न ही आसानी से उतर सकती क्योंकि वो तो उसकी उंगली में फंस चुकी है ,
एक अजीब सी कशमकश में है विशाल एक तरफ उसके प्यार की निशानी और दूसरी तरफ उसके प्यार को पाने का जरिया उसकी नौकरी और अंततः विशाल उस अंगूठी को कटवा कर टेस्ट देने चला जाता है ।
अब विशाल को इंतजार है दोबारा से दिल्ली जाने का
उसे इंतजार है उस होली का जब विशाल छत लर खड़ा होगा और शिवी शर्मा कर अंदर चली जायेगी .......
जारी है ...........
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